Wednesday, September 1, 2010

फर्क इतना सा था

फर्क इतना सा था

तेरी  डोली  उठी , मेरी मय्यत  उठी ,


फूल  तुझ  पर  भी  बरसे , फूल  मुझ  पर  भी  बरसे ,

फर्क  सिर्फ  इतना  सा  था

तू  सज  गयी , मुझे  सजाया  गया  .

तू  भी  घर  को  चली ,  मैं  भी    घर  को  चला ,

फर्क  सिर्फ  इतना  सा  था

तू  उठ  के  गयी , मुझे  उठाया  गया  .
महफ़िल  वहां  भी  थी , लोग  यहाँ  भी  थे ,
फर्क  सिर्फ  इतना  सा  था

उनका  हसना  वहां ,इनका  रोना  यहाँ .
क़ाज़ी  उधर  भी  था , मोलवी  इधर  भी  था ,
दो  बोल  तेरे  पड़े , दो  बोल  मेरे  पड़े ,
तेरा  निकाह  पड़ा , मेरा  जनाज़ा  पड़ा ,

तुझे  अपनाया  गया  , मुझे दफनाया गया .


फर्क सिर्फ इतना सा था

आंसू

आंसू तुम क्यों  आते हो
नयन पलक पर छलक छलक कर मन की व्यथा जताते हो
आंसू तुम क्यों आते हो
जब मन सागर में उठती है तरंगे बाणी व्यथा जानकर
स्वयं हार मान कर थक कर सो जाते हो
आंसू तुम क्यों आते हो
आंसू तुम हो अजब अमूल्य 
पलक झपकते ही गिरतेहो स्नेह सुधा तुल्य
कभी ख़ुशी तो कभी गम को दर्शाते  हो 
आंसू तुम क्यों  आते हो
ये बूँद नहीं है है सागर दुःख का
सुख की भी पहचान यही है
कोई न जाने इनकी माया
क्यों निकले ये सुख में दुःख में
फिर क्यों इसमें सिमटे रहते हो
आंसू तुम क्यों आते हो