Tuesday, August 31, 2010

सफ़र जिंदिगी का

कहते है जिंदगी जीने का नाम है प्रयास
कर्म व मनोबल इसके कई आयाम है
एक मकसद को मन मे संजोय हुए कर्म
व संकल्प की लडिया मन में पिरोये हुए
निरंतर चलते जाना ही हमारा काम है
पथ मे काँटों से घबराना नहीं है
क्योकि मंजिले बाह फैला  कर बैठी है
तभी मिलता हमें सुखद परिणाम है ,
जिंदगी के सफ़र में मिलते है कई हम सफ़र ,
सफ़र इक पर मकसद अनेक
राहगीर बन जाते है अपने
उनमे तर्क वितर्क  हो जाये अगर ,
यही तो कहलाता है इक सफ़र जिंदिगी का
और यही तो हमें दिखाता है गुमनाम रास्तो में पथ रौशनी का 

दहेज़

पनप रही है  भारत मैं समस्याये अनेक, उभर चुका है अभिशाप बन दूसरी ओर दहेज़, .
समय बदला समाज बदला बदली न रुदिवादिता  भेट स्वरुप मिली है जिससे यह दहेजदानावता
आज भी हर रोज वह दुखद जीवन जीने को है मजबूर
सुखद सपने सजोती है वह, खुशियाँ तो है  मानो कोसों  दूर,
नारी का चाहे जो भी  रूप हो नारी होना ही मानो अभिशाप हो
गुजरना होता है उसे इसी पथ से इक वेदना व् करुण क्रंदन सा झलकता है उसके सजल नेत्र से 
पर क्या कहे पर कहने को तो समाज बहुत कुछ कहता है
पर क्या करे सहने को तो वह हर रोज बेटिओं का गम सहता है
धारणा तो हम रखते है इस कुप्रथा को मिटाने को ,
पर समाज ही दोषी है इस दहेज़ दानव को जगाने को
हर पिता चाह रखता है बेटी को हर ख़ुशी दिलाने को
समझोता करता है विषम  परिस्थिति से वचन अपना निभाने को 
पर फिर भी मौत के आगोश मे सोती है हमारी बेटिया
झील सी गहराइयों में हो जाती है विलीन गम के अंधेरो में गुम जाती है हमारी बेटिया

Sunday, August 29, 2010

एक सुबह

एक सुबह खुशनुमा सी सामने है झील से लहराती


हवाओं का वोह मंद मंद चलना

पक्षियों का उन्मुक्त चेह्कना

रोम रोम को आछादित कर देता है

जीवन में मनो नयी आशाओं का संचार कर देता है

हर दिन की नयी शुरुवात है ये सुबह

मानव में कर्म का आगाज़ है ये सुबह

पल पल में इंसान को जगती है ये सुबह

हमारी ज़िन्दगी का नियमित आधार है ये सुबह

हर दिन आने वाली ये सुबह

मुझे कुछ सिखाती है

मेरा आने वाला हर दिन आचा हो

ये आभाष कराती है