आंसू तुम क्यों आते हो
नयन पलक पर छलक छलक कर मन की व्यथा जताते हो
आंसू तुम क्यों आते हो
जब मन सागर में उठती है तरंगे बाणी व्यथा जानकर
स्वयं हार मान कर थक कर सो जाते हो
आंसू तुम क्यों आते हो
आंसू तुम हो अजब अमूल्य
पलक झपकते ही गिरतेहो स्नेह सुधा तुल्य
कभी ख़ुशी तो कभी गम को दर्शाते हो
आंसू तुम क्यों आते हो
ये बूँद नहीं है है सागर दुःख का
सुख की भी पहचान यही है
कोई न जाने इनकी माया
क्यों निकले ये सुख में दुःख में
फिर क्यों इसमें सिमटे रहते हो
आंसू तुम क्यों आते हो
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