Wednesday, September 1, 2010

आंसू

आंसू तुम क्यों  आते हो
नयन पलक पर छलक छलक कर मन की व्यथा जताते हो
आंसू तुम क्यों आते हो
जब मन सागर में उठती है तरंगे बाणी व्यथा जानकर
स्वयं हार मान कर थक कर सो जाते हो
आंसू तुम क्यों आते हो
आंसू तुम हो अजब अमूल्य 
पलक झपकते ही गिरतेहो स्नेह सुधा तुल्य
कभी ख़ुशी तो कभी गम को दर्शाते  हो 
आंसू तुम क्यों  आते हो
ये बूँद नहीं है है सागर दुःख का
सुख की भी पहचान यही है
कोई न जाने इनकी माया
क्यों निकले ये सुख में दुःख में
फिर क्यों इसमें सिमटे रहते हो
आंसू तुम क्यों आते हो

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