हर ख़ुशी है लोगों के दामन में,
पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं.
माँ की लोरी का एहसास तो है,
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं.
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं.
सारे नाम हैं, मोबाइल में
पर दिल पर एक नहीं.
गैरों की क्या बात करें,
जबअपनों के लिए ही वक़्त नहीं.
आँखों में है नींद बड़ी,
पर सोने का वक़्त नहीं.
दिल है ग़मों से भरा हुआ,
पर रोने का भी वक़्त नहीं.
पैसों कि दौड़ में ऐसे दौड़े,
की थकने का भी वक़्त नहीं.
पराये एहसासों की क्या कद्र करें,
जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नहीं.
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी,
इस ज़िन्दगी का क्या होगा,
की हर पल मरने वालों को,
जीने के लिए भी वक़्त नहीं.......
बहुत सुन्दर बातें युक्ता जी - हकीकत को बयां करती कविता। इसी भाव-भूमि पर कभी की लिखी अपनी कविता का लिंक - http://manoramsuman.blogspot.com/2009/12/blog-post_13.html को जब समय मिले देख लीजियेगा - शायद आपकी ही बात दूसरे अंदाज में है।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत सुन्दर लफ्जों में हकीकत को बयां किया है|
ReplyDelete"दिन रात दौड़ती दुनिया में,
ReplyDeleteज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं
..
हर पल मरने वालों को,
जीने के लिए भी वक़्त नहीं......."
सच्चे और अच्छे जीवन सन्देश देती रचना - - शुभकामनाएं
क्या बात है !
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी कविता !
मचान
VERY-VERY NICE........
ReplyDeleteअच्छी बातें, सुन्दर रचना. बहुत सलीके से पेश किया है.
ReplyDeleteनिरंतर लेखन हेतु शुभकामनाएं.
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वात्स्यायन गली
शानदार प्रयास बधाई और शुभकामनाएँ।
ReplyDelete-लेखक (डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश') : समाज एवं प्रशासन में व्याप्त नाइंसाफी, भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार, अत्याचार और गैर-बराबरी आदि के विरुद्ध 1993 में स्थापित एवं 1994 से राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान- (बास) के मुख्य संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। जिसमें 05 अक्टूबर, 2010 तक, 4542 रजिस्टर्ड आजीवन कार्यकर्ता राजस्थान के सभी जिलों एवं दिल्ली सहित देश के 17 राज्यों में सेवारत हैं। फोन नं. 0141-2222225 (सायं 7 से 8 बजे), मो. नं. 098285-02666.
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