Tuesday, October 5, 2010

कोहरा

कोहरे सी चादर लपेटे हुए ये धरती
लगता है ऐसा कि आसमा में खो गयी है धरती
ज़िन्दगी को भी कोहरे की संज्ञा दे दे तो कुछ खता नहीं
क्योकि कोहरा आता है छट जाता है यह राज किसी से छिपा नहीं
जिंदगी भी सुख दुःख ख़ुशी गम की ओड़नी सी है हर पल ओड़े रहती है
थोड़े समय के लिए ही सही पर ये सदा धेर्य से सब सहती रहती है
हर मुश्किल हो मानो इस जीवन की झंकार जो कोहरे तुल्य आयेगी छट जाएगी
सुखमय हो जायेगा अपना संसार
हर चीज़ छडिक है इस जीवन मे ,
जन्म म्रत्यु सब कुछ तो छाणिक है इस जीवन मे
आना जाना खोना पाना भी छडिक है इस जीवन मे
कोहरे के रूप अनेक वो भी छडिक  है इस जीवन मे
ऊपर लिखित सर्वाभीव्यक्ति का है ये दर्पण
इसी से अभिभूत हो करे मानव हर कष्ट का निवारण
सुख दुःख ख़ुशी गम सब इक दुसरे को है अर्पण
कोहरे रुपी भाव का नाम ही है समर्पण

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