परवशता
जो आंखे बरसा रही थी स्नेह सुधा मेरे लिए
पलक झपकते ही बुन दिया इक अभेद्य जाल
इन काबिल लोगो के बीच में निकम्मा सिद्ध हुआ
और उठा दिया गया इशारो ही इशारो में इनके बीच से
और इक दुसरे को देखती इनकी पुतलियाँ हंसी जी भर कर
मेरी अयोग्यता और नादानी पर, मेरे सबसे योग्य होते हुए भी
मेने बार बार सिद्ध किया अपनी योग्यता और सार्थकता
पर हटा दिया गया हमेशा के लिए मकान के उस कोने से भी
जोसुरक्षित था जंग लगे लोहे और रद्दी पड़े अख़बार के लिए
श्रंखलाये
Sunday, October 31, 2010
Tuesday, October 19, 2010
वक़्त नहीं
हर ख़ुशी है लोगों के दामन में,
पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं
दिन रात दौड़ती दुनिया में,
ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं.
माँ की लोरी का एहसास तो है,
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं.
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके,
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं.
सारे नाम हैं, मोबाइल में
पर दिल पर एक नहीं.
गैरों की क्या बात करें,
जबअपनों के लिए ही वक़्त नहीं.
आँखों में है नींद बड़ी,
पर सोने का वक़्त नहीं.
दिल है ग़मों से भरा हुआ,
पर रोने का भी वक़्त नहीं.
पैसों कि दौड़ में ऐसे दौड़े,
की थकने का भी वक़्त नहीं.
पराये एहसासों की क्या कद्र करें,
जब अपने सपनो के लिए ही वक़्त नहीं.
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी,
इस ज़िन्दगी का क्या होगा,
की हर पल मरने वालों को,
जीने के लिए भी वक़्त नहीं.......
Tuesday, October 5, 2010
मंदिर मस्जिद कहा बनेगा
मंदिर तो बन जाएगा , पर राम कहाँ से लाओगे ? ...
उस मस्जिद कि दीवारों को , क्या पाक कभी कर पाओगे ? ....
जिस चौखट पर लोग जले , राम वहां न जायेंगे ...
जिन गलियारों में खून गिरा , मौला क्या रह पायेंगे ?
क्या बनाने आये थे क्या बना बेठे
श्री राम चन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आयेगा ,
कहा हुआ था जन्म मेरा ये इक दिन हाई कोर्ट बताएगा
उस मस्जिद कि दीवारों को , क्या पाक कभी कर पाओगे ? ....
जिस चौखट पर लोग जले , राम वहां न जायेंगे ...
जिन गलियारों में खून गिरा , मौला क्या रह पायेंगे ?
क्या बनाने आये थे क्या बना बेठे
कहीं मंदिर बना बेठे कही मस्जिद बना बेठे
हमसे तो अछी ज़ात है परिंदों कि ....
कभी मंदिर पे जा बेठे कभी मस्जिद पे जा बेठे .
श्री राम चन्द्र कह गए सिया से ऐसा कलयुग आयेगा ,कहा हुआ था जन्म मेरा ये इक दिन हाई कोर्ट बताएगा
कोहरा
कोहरे सी चादर लपेटे हुए ये धरती
लगता है ऐसा कि आसमा में खो गयी है धरती
ज़िन्दगी को भी कोहरे की संज्ञा दे दे तो कुछ खता नहीं
क्योकि कोहरा आता है छट जाता है यह राज किसी से छिपा नहीं
जिंदगी भी सुख दुःख ख़ुशी गम की ओड़नी सी है हर पल ओड़े रहती है
थोड़े समय के लिए ही सही पर ये सदा धेर्य से सब सहती रहती है
हर मुश्किल हो मानो इस जीवन की झंकार जो कोहरे तुल्य आयेगी छट जाएगी
सुखमय हो जायेगा अपना संसार
हर चीज़ छडिक है इस जीवन मे ,
जन्म म्रत्यु सब कुछ तो छाणिक है इस जीवन मे
आना जाना खोना पाना भी छडिक है इस जीवन मे
कोहरे के रूप अनेक वो भी छडिक है इस जीवन मे
ऊपर लिखित सर्वाभीव्यक्ति का है ये दर्पण
इसी से अभिभूत हो करे मानव हर कष्ट का निवारण
सुख दुःख ख़ुशी गम सब इक दुसरे को है अर्पण
कोहरे रुपी भाव का नाम ही है समर्पण
लगता है ऐसा कि आसमा में खो गयी है धरती
ज़िन्दगी को भी कोहरे की संज्ञा दे दे तो कुछ खता नहीं
क्योकि कोहरा आता है छट जाता है यह राज किसी से छिपा नहीं
जिंदगी भी सुख दुःख ख़ुशी गम की ओड़नी सी है हर पल ओड़े रहती है
थोड़े समय के लिए ही सही पर ये सदा धेर्य से सब सहती रहती है
हर मुश्किल हो मानो इस जीवन की झंकार जो कोहरे तुल्य आयेगी छट जाएगी
सुखमय हो जायेगा अपना संसार
हर चीज़ छडिक है इस जीवन मे ,
जन्म म्रत्यु सब कुछ तो छाणिक है इस जीवन मे
आना जाना खोना पाना भी छडिक है इस जीवन मे
कोहरे के रूप अनेक वो भी छडिक है इस जीवन मे
ऊपर लिखित सर्वाभीव्यक्ति का है ये दर्पण
इसी से अभिभूत हो करे मानव हर कष्ट का निवारण
सुख दुःख ख़ुशी गम सब इक दुसरे को है अर्पण
कोहरे रुपी भाव का नाम ही है समर्पण
Wednesday, September 1, 2010
फर्क इतना सा था
फर्क इतना सा था
तेरी डोली उठी , मेरी मय्यत उठी ,
फूल तुझ पर भी बरसे , फूल मुझ पर भी बरसे ,
फर्क सिर्फ इतना सा था
तू सज गयी , मुझे सजाया गया .
तू भी घर को चली , मैं भी घर को चला ,
फर्क सिर्फ इतना सा था
तू उठ के गयी , मुझे उठाया गया .
महफ़िल वहां भी थी , लोग यहाँ भी थे ,
फर्क सिर्फ इतना सा था
उनका हसना वहां ,इनका रोना यहाँ .
क़ाज़ी उधर भी था , मोलवी इधर भी था ,
दो बोल तेरे पड़े , दो बोल मेरे पड़े ,
तेरा निकाह पड़ा , मेरा जनाज़ा पड़ा ,
तुझे अपनाया गया , मुझे दफनाया गया .
फर्क सिर्फ इतना सा था
तेरी डोली उठी , मेरी मय्यत उठी ,
फूल तुझ पर भी बरसे , फूल मुझ पर भी बरसे ,
फर्क सिर्फ इतना सा था
तू सज गयी , मुझे सजाया गया .
तू भी घर को चली , मैं भी घर को चला ,
फर्क सिर्फ इतना सा था
तू उठ के गयी , मुझे उठाया गया .
महफ़िल वहां भी थी , लोग यहाँ भी थे ,
फर्क सिर्फ इतना सा था
उनका हसना वहां ,इनका रोना यहाँ .
क़ाज़ी उधर भी था , मोलवी इधर भी था ,
दो बोल तेरे पड़े , दो बोल मेरे पड़े ,
तेरा निकाह पड़ा , मेरा जनाज़ा पड़ा ,
तुझे अपनाया गया , मुझे दफनाया गया .
फर्क सिर्फ इतना सा था
आंसू
आंसू तुम क्यों आते हो
नयन पलक पर छलक छलक कर मन की व्यथा जताते हो
आंसू तुम क्यों आते हो
जब मन सागर में उठती है तरंगे बाणी व्यथा जानकर
स्वयं हार मान कर थक कर सो जाते हो
आंसू तुम क्यों आते हो
आंसू तुम हो अजब अमूल्य
पलक झपकते ही गिरतेहो स्नेह सुधा तुल्य
कभी ख़ुशी तो कभी गम को दर्शाते हो
आंसू तुम क्यों आते हो
ये बूँद नहीं है है सागर दुःख का
सुख की भी पहचान यही है
कोई न जाने इनकी माया
क्यों निकले ये सुख में दुःख में
फिर क्यों इसमें सिमटे रहते हो
आंसू तुम क्यों आते हो
नयन पलक पर छलक छलक कर मन की व्यथा जताते हो
आंसू तुम क्यों आते हो
जब मन सागर में उठती है तरंगे बाणी व्यथा जानकर
स्वयं हार मान कर थक कर सो जाते हो
आंसू तुम क्यों आते हो
आंसू तुम हो अजब अमूल्य
पलक झपकते ही गिरतेहो स्नेह सुधा तुल्य
कभी ख़ुशी तो कभी गम को दर्शाते हो
आंसू तुम क्यों आते हो
ये बूँद नहीं है है सागर दुःख का
सुख की भी पहचान यही है
कोई न जाने इनकी माया
क्यों निकले ये सुख में दुःख में
फिर क्यों इसमें सिमटे रहते हो
आंसू तुम क्यों आते हो
Tuesday, August 31, 2010
सफ़र जिंदिगी का
कहते है जिंदगी जीने का नाम है प्रयास
कर्म व मनोबल इसके कई आयाम है
एक मकसद को मन मे संजोय हुए कर्म
व संकल्प की लडिया मन में पिरोये हुए
निरंतर चलते जाना ही हमारा काम है
पथ मे काँटों से घबराना नहीं है
क्योकि मंजिले बाह फैला कर बैठी है
तभी मिलता हमें सुखद परिणाम है ,
जिंदगी के सफ़र में मिलते है कई हम सफ़र ,
सफ़र इक पर मकसद अनेक
राहगीर बन जाते है अपने
उनमे तर्क वितर्क हो जाये अगर ,
यही तो कहलाता है इक सफ़र जिंदिगी का
और यही तो हमें दिखाता है गुमनाम रास्तो में पथ रौशनी का
कर्म व मनोबल इसके कई आयाम है
एक मकसद को मन मे संजोय हुए कर्म
व संकल्प की लडिया मन में पिरोये हुए
निरंतर चलते जाना ही हमारा काम है
पथ मे काँटों से घबराना नहीं है
क्योकि मंजिले बाह फैला कर बैठी है
तभी मिलता हमें सुखद परिणाम है ,
जिंदगी के सफ़र में मिलते है कई हम सफ़र ,
सफ़र इक पर मकसद अनेक
राहगीर बन जाते है अपने
उनमे तर्क वितर्क हो जाये अगर ,
यही तो कहलाता है इक सफ़र जिंदिगी का
और यही तो हमें दिखाता है गुमनाम रास्तो में पथ रौशनी का
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